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PANCHAMUKHA HANUMAN STUTI

  PANCHAMUKHA HANUMAN STUTI Om namo hanumantte poorva mukhe  kapivaraya  sarva durithapa haraya swaha | Om namo hanumate dakshina mukhe Karala narasimha samastha shatru nashaya  Abhista siddhi daya kaya swaha | Om namo hanumate Paschima mukha Veera garudaya sarva visha haraya  Sakala graha nashakaya sowbhagyam  siddhim kuru kuru swaha | Om namo hanumantte utthara mukhe  Lakshmi varahaya dushta danava samharaya Ma ma ashta aishwarya siddhim tapaya swaha | Om namo hanumantte oorthva mukhe  Hayagreevaya  mokshanaya siddhidaya  Sarva vidya sampath pradhya  Santhaana siddhidaya  swaha |
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Ram Raksha stotra in Hindi

 श्रीगणेशायनम: । अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य । बुधकौशिक ऋषि: । श्रीसीतारामचंद्रोदेवता । अनुष्टुप् छन्द: । सीता शक्ति: । श्रीमद्‌हनुमान् कीलकम् । श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥ ॥ अथ ध्यानम् ॥ ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्‌मासनस्थं । पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ॥ वामाङ्‌कारूढ-सीता-मुखकमल-मिलल्लोचनं नीरदाभं । नानालङ्‌कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम् ॥ ॥ इति ध्यानम् ॥ चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् ।  एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥१॥ ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् ।  जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम् ॥२॥ सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम् ।  स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥३॥ रामरक्षां पठेत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।  शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥ कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती ।  घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥ जिव्हां विद्यानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित: ।  स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥ करौ सीतापति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित् ।  मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवद

BHAKTAMAR STOTRA SANSKRIT

  भक्तामर - प्रणत - मौलि - मणि -प्रभाणा- मुद्योतकं दलित - पाप - तमो - वितानम्। सम्यक् -प्रणम्य जिन - पाद - युगं युगादा- वालम्बनं भव - जले पततां जनानाम्।। 1॥ य: संस्तुत: सकल - वाङ् मय - तत्त्व-बोधा- दुद्भूत-बुद्धि - पटुभि: सुर - लोक - नाथै:। स्तोत्रैर्जगत्- त्रितय - चित्त - हरैरुदारै:, स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम्॥ 2॥ बुद्ध्या विनापि विबुधार्चित - पाद - पीठ! स्तोतुं समुद्यत - मतिर्विगत - त्रपोऽहम्। बालं विहाय जल-संस्थित-मिन्दु-बिम्ब- मन्य: क इच्छति जन: सहसा ग्रहीतुम् ॥ 3॥ वक्तुं गुणान्गुण -समुद्र ! शशाङ्क-कान्तान्, कस्ते क्षम: सुर - गुरु-प्रतिमोऽपि बुद्ध्या । कल्पान्त -काल - पवनोद्धत- नक्र- चक्रं , को वा तरीतुमलमम्बुनिधिं भुजाभ्याम्॥ 4॥ सोऽहं तथापि तव भक्ति - वशान्मुनीश! कर्तुं स्तवं विगत - शक्ति - रपि प्रवृत्त:। प्रीत्यात्म - वीर्य - मविचार्य मृगी मृगेन्द्रम् नाभ्येति किं निज-शिशो: परिपालनार्थम्॥ 5॥ अल्प- श्रुतं श्रुतवतां परिहास-धाम, त्वद्-भक्तिरेव मुखरी-कुरुते बलान्माम् । यत्कोकिल: किल मधौ मधुरं विरौति, तच्चाम्र -चारु -कलिका-निकरैक -हेतु:॥ 6॥ त्वत्संस्तवेन भव - सन्तति-सन्नि

Bishnu Sahasranamam Stotram

  শ্রী বিষ্ণু সহস্র নাম স্তোত্রম্ ওং শুক্লাং বরধরং বিষ্ণুং শশিবর্ণং চতুর্ভুজম্ । প্রসন্নবদনং ধ্যাযেত্ সর্ববিঘ্নোপশাংতযে ॥ 1 ॥ যস্যদ্বিরদবক্ত্রাদ্যাঃ পারিষদ্যাঃ পরঃ শতম্ । বিঘ্নং নিঘ্নংতি সততং বিষ্বক্সেনং তমাশ্রযে ॥ 2 ॥ পূর্ব পীঠিকা ব্যাসং বসিষ্ঠ নপ্তারং শক্তেঃ পৌত্রমকল্মষম্ । পরাশরাত্মজং বংদে শুকতাতং তপোনিধিম্ ॥ 3 ॥ ব্যাসায বিষ্ণু রূপায ব্যাসরূপায বিষ্ণবে । নমো বৈ ব্রহ্মনিধযে বাসিষ্ঠায নমো নমঃ ॥ 4 ॥ অবিকারায শুদ্ধায নিত্যায পরমাত্মনে । সদৈক রূপ রূপায বিষ্ণবে সর্বজিষ্ণবে ॥ 5 ॥ যস্য স্মরণমাত্রেণ জন্মসংসারবংধনাত্ । বিমুচ্যতে নমস্তস্মৈ বিষ্ণবে প্রভবিষ্ণবে ॥ 6 ॥ ওং নমো বিষ্ণবে প্রভবিষ্ণবে । শ্রী বৈশংপাযন উবাচ শ্রুত্বা ধর্মা নশেষেণ পাবনানি চ সর্বশঃ । যুধিষ্ঠিরঃ শাংতনবং পুনরেবাভ্য ভাষত ॥ 7 ॥ যুধিষ্ঠির উবাচ কিমেকং দৈবতং লোকে কিং বাঽপ্যেকং পরাযণং স্তুবংতঃ কং কমর্চংতঃ প্রাপ্নুযুর্মানবাঃ শুভম্ ॥ 8 ॥ কো ধর্মঃ সর্বধর্মাণাং ভবতঃ পরমো মতঃ । কিং জপন্মুচ্যতে জংতুর্জন্মসংসার বংধনাত্ ॥ 9 ॥ শ্রী ভীষ্ম উবাচ জগত্প্রভুং দেবদেব মনংতং পুরুষোত্তমম্ । স্তুবন্নাম সহস্রেণ পুরুষঃ সততোত্থিতঃ ॥ 10 ॥ তমেব চার্চযন্নিত্